मेरी बागवानी यात्रा
बारह साल पूर्व तक बागवानी में रुचि नहीं के बराबर थी , कुछ पौधे श्रीमती जी ने घर पर ही पौधे बेचने वालों से बागवानी की रूचि के कारण लिए थे , केवल वही थे । मित्रों के बगीचों को देखकर रुचि जागृत हुई। आज लगभग 500 पौधे है । जुनून अडेनियम के फूलों के कारण बढ़ता गया। बागवानी यात्रा की शुरुआत में हर कुछ नया लगता था। सीज़नल, कैक्टस, गुलाब, हाइब्रिड हैबिस्कस अब संग्रह में नहीं है। एक समय था जब इनकी बहार जन्नत लगती थी। अब सभी परमानेंट एवं उनमें भी अनेक असुलभ पौधे संग्रहीत हो गये है। इस बीच कटिंग से पौधे तैयार कर एवं अपने यहां बन रहे सीड्स का निःशुल्क वितरण आनंदित करने लगा है। छत बगीच़ा कम.. नर्सरी या जंगल ज्यादा लगता है । कुछ वर्ष पूर्व फेसबुक पर मेरे पर्सनल ब्लॉग पर एक ग्राफ्टेड गुडहल के पौधे में तीन कलर के फूल ( जो मुझे मित्र से उपहार में मिला था ) की पोस्ट पर 140000 लाईक व 4800 शेयर मिले थे । मुख्य बात यह है कि इस पोस्ट ने गुड़हल पर ग्राफ्टिंग करने की ओर बागवानों को प्रेरित किया।
विद्यार्थी जीवन में यदा-कदा किए जाने वाले लेखन को बागवानी ने उर्जा दी है। अब तो विभिन्न बगीच़ों एवं उसके बागवान पर केन्द्रित मेरा आलेख प्रकृति दर्शन पत्रिका का हर माह का आकर्षण है । पर्यटन पर देश अथवा विदेश जाने पर मुख्य आकर्षण ही वहां के पेड़,पौधे, फूल रहते है। विदेश में भी नर्सरी भ्रमण प्राथमिकता में रहता है।
नित्य खिलने वाले फूलों के दर्शन सुप्रभात की मंगलबेला में देखकर शुरू होने वाला दिन आनंदमयी होता है । पौधे वह पारिवारिक सदस्य हैं जो सदैव मुस्कान प्रदान करते है । इस हेतु मातृत्व भावना विकसित होना भी आवश्यक है । यदि आप में मातृत्व भावना विकसित हो जाती है तो जिस तरह बच्चों की बाल सुलभ गतिविधियाँ आनंद देती है , उसी तरह पौधे भी असीम आनंद देते हैं । फूल व पत्तियों की कोमलता को स्पर्श के साथ महसूस करना , सुगंधित महक से सराबोर होना , पौधों व फूलों के सौंदर्य को कैमरे में कैद कर प्रसारित करना , पौधों को पानी देना … नित्य की दिनचर्या है जो 68 वर्ष की उम्र में स्वयं के लिए जीने व आनंद प्राप्त करने का साध्य हो गया है ।
कोई कितना भी समृद्ध अथवा निर्धन व्यक्ति हो .. यदि सार्मथ्य अनुसार पौधों का संग्रह व देखभाल करेगा तो अवसाद से दूर रहेगा ।
महेश बंसल
इंदौर
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